गौतम बुद्ध की जीवनी ,इतिहास ( Biographical History of Gautam buddha )

 गौतम बुद्ध की जीवनी ,इतिहास 

( Biographical History of Gautam buddha )

                         

दुनिया को अपने विचारों से नया रास्ता दिखाने वाले भगवान गौतम बुद्ध भारत के महान दार्शनिक ,वैज्ञानिक ,धर्मगुरु ,एक महानं समाज सुधारक के साथ -साथ बौद्ध धर्म के संस्थापक भी थे। गौतम बुद्ध की विवाह यशोधरा के साथ हुई थी। गौतम बुद्ध का एक बेटा भी था जिसका नाम राहुल था। विवाह के कुछ समय बाद गौतम बुद्ध ने दिव्य ज्ञान की खोज में अपनी पत्नी बच्चे और घर सब त्याग दिया। 

वे संसार को जन्म ,मरण और दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश और दिव्य (Divine) ज्ञान की खोज में इन सामाजिक सुखों को त्याग कर चुपके से अपने राजमहल से रात को जंगल की ओर चल पड़े। बहुत सालों के बाद कठोर साधना (Meditation) के बाद बिहार में स्थित बोध गया में बोधि वृक्ष के निचे उन्हें ज्ञान प्राप्ति हुई। और ज्ञान प्राप्ति बाद वह सिद्धार्थ गौतम से गौतम बुद्ध बन गए। 

आज पुरे दुनिया में लगभग 190 करोड़ बौद्ध धर्म के अनुयायी (Follower) है। एक सर्वे के अनुसार बताया गया है की चीन ,जापान ,भूटान ,वियतनाम ,मंगोलिया ,कम्बोडिया ,थाईलैंड ,साउथ कोरिया। सिंगापूर ,Hong-kong ,भारत मलेशिया ,इंडोनेशिया ,भारत ,नेपाल अमेरिका और श्रीलंका आदि देश आते है ,जिसमे भारत ,भूटान और श्रीलंका में बौद्ध धर्म के अनुयायी भारी संख्या में है।  


नाम - सिद्धार्थ गौतम बुद्ध 

जन्म - 563 ईसवी पूर्व लुंबनी ,नेपाल

मृत्यु - 483 ईसवी पूर्व (आयु - 80 वर्ष ) कुशीनगर ,भारत 

जीवनसाथी - राजकुमारी यशोधरा 

बच्चें - एकलौता पुत्र राहुल 

गौतम बुद्ध के पिता का नाम -सुद्धोदन जो की एक राजा और कुशल शासक थे। 

माता का नाम - माया देवी (महारानी )

बौद्ध धर्म की स्थापना - चौथी शताब्दी के दौरान हुई

ज्ञान की प्राप्ति - बोधगया में 


Content:-

1.  गौतम बुद्ध का जीवनी परिचय 

2.  बाल्यावस्था एव शिक्षा 

3.  विवाह कब हुआ 

4.  गौतम बुद्ध का गृह त्याग 

5. गौतम बुद्ध की ज्ञान की प्राप्ति 

6. गौतम बुद्ध का धर्म चक्र और परिवर्तन 

7. गौतम बुद्ध के मुख्य उपदेश 


1.  गौतम बुद्ध का जीवनी परिचय 

गौतम बुद्ध का का जन्म 563 साल पहले कपिलवस्तु के समीप लुम्बिनी नेपाल में हुआ था। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी अपने नैहर देवदह जा रही थी ,तो रास्ते में लुम्बिनी नामक वन में उन्होंने एक बच्चे (गौतम बुद्ध ) को जन्म दिया। 

गौतम गौत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम बुद्ध कहलाये। इनके पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे ,इनकी माता महारानी माया देवी कोली वंश की महिला थी पर बच्चे को जन्म देने के बाद 7 दिन के भीतर माया देवी की मृत्यु हो गयी थी। गौतम बुद्ध के माता के मृत्यु के बाद इनका लालन -पालन इनकी मौसी और राजा की दूसरी पत्नी रानी गौतमी ने की और इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ रख दिया। इस नाम का मतलब है ,जो सिद्धि प्राप्ति के लिए जन्मा हो लेकिन इनको बाद में अपने मेहनत पर सिद्धि मिली थी। सिद्धार्थ बचपन से ही बहुत ही दयालु और करुणा वाले व्यक्ति थे। 

सिद्धार्थ जब बचपन में खेल खेलते थे तो वे खुद ही हार जाते थे क्योंकि वो दूसरे को निराशा नहीं देख सकते थे। सिद्धार्थ का एक चचेरा भाई भी था जिसका नाम देवदंत था एक बार देवदंत ने अपने धनुष -बाण से एक पक्षी हंस को घायल दिया जिसे सिद्धार्थ ने उस हंस के घाव पर औषधि लगा कर उसकी रक्षा की था।


2.  बाल्यावस्था एव शिक्षा    

बौद्धिक और आध्यात्मिक विषयों में सिद्धार्थ की बहुत रूचि थी ,इनके गुरु विश्वामित्र ने इन्हे वेद और उपनिषदों की शिक्षा दी। राज्यसभा की बैठकों और सभाओं में उपस्थित होकर इनहोने शासन कला की शिक्षा ली। सिद्धार्थ सभी बच्चों की तरह चंचल नहीं थे उनका बाल स्वभाव उदासीन था। वह बचपन से ही वृक्ष के निचे बैठकर दुनिया के रंग -ढंग पर चिंतन किया करते थे। 

सिद्धार्थ के जन्म के बाद राजा सुद्धोदन ने बहुत से साधु -संत को बुलाया था सिद्धार्थ का भविष्य देखने के लिए कुछ साधुओं ने कहा की ये बड़ा होकर महान राजा बनेगा फिर कुछ साधुओ ने कहा की ये बड़ा होकर गृह हस्थ जीवन त्याग अर्थात सन्यासी बनेगा राजा सुद्धोदन को ये बात अंदर ही अंदर खायी जा रही थी सिद्धार्थ बड़ा होकर कही सन्यासी न बन जाये। तो उन्होंने उसके तमाम दुःख -दर्द कष्टों से दूर रखा ताकि ये सन्यासी न बने और तमाम सुख -सुविधाएं ,भोग विलाश की वस्तुएँ उपलब्ध कराई ,ताकि सिद्धार्थ गृहस्थ जीवन त्याग ,सन्यासी न बने।   


3. विवाह कब हुआ  

सिद्धार्थ का विवाह 547 ईसा पूर्व 16 वर्षीय में राजकुमारी यशोधरा से हुआ। यह विवाह इस लिए हुआ ताकि सिद्धार्थ पारिवारिक मोह माया में बंध जाये और सन्यासी ग्रहण ना कर सके। परन्तु सिद्धार्थ कभी भी अपने ऊपर भोग विलाश को हावी नहीं होने देते थे ,और अपनी पत्नी से भी ढेर सारी ज्ञान की बाते किया करते थे। उनका कहना था की पुरे संसार में केवल स्त्री ही पुरुषों के आत्मा को बांध सकती हैं।  सिद्धार्थ महल में रहकर भी वह बाहरी दुनिया के बारे में चिंतन के कारण उन्हें भोग विलास की चीजों का आनंद फीखा लगता था तथा पारिवारिक मोह को कभी अपने लक्ष्य प्राप्ति के मध्य नहीं आने दिया। 


4. गौतम बुद्ध का गृह त्याग

कहा जाता है की बौद्ध साहित्य के अनुसार उनके जीवन की चार घटनाओ ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। जिसके कारण उन्होंने गृहत्याग करने का मन बना लिया। जैसा की प्रसिद्ध है की राजकुमार सिद्धार्थ अपने सारथी चन्ना के साथ में रथ सवार होकर घूमने निकले रास्ते में उन्हों ने देखा की एक वृद्ध व्यक्ति जा रहा था जो की काफी कमजोर था फिर आगे चलते -चलते उन्होंने एक एक रोगी को देखा जो पीड़ा से काफी तरप रहा था ये सब देख कर उनके मन में बहुत से सवाल उठ रहे थे। फिर आगे चलते-चलते उन्होंने देखा की एक मृत व्यक्ति को चार कंधो पर जाते हुए देखा उसके बाद वह फिर आगे चल दिए ,फिर रास्ते में उन्हें एक सन्यासी दिखाई दिया। 

ये सब देखने के बाद वह सोचने लगे की `धिक्कार है जवानी को ,जो जीवन को सोख लेती है। धिक्कार है स्वास्थ को ,जो शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है जीवन को ,जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर देता है। उन्हें विश्वास हो गया की ,यह संसार दुखो का घर है और यह शरीर तथा शारीरिक सुख -दुःख सभी एक क्षण के लिए ही है। 

इन सब कारण सिद्धार्थ का मन अशांत रहने लगा। सत्य ज्ञान के प्राप्ति के लिए उन्होंने सन्यास धारण करने का निश्च्य लिया। वैराग्य की भावना सिद्धार्थ के मन में धीरे -धीरे प्रबल होती चली गयी। और उन्होंने एक रात अपने घरबार ,माता -पिता ,पत्नी और पुत्र तथा राजसी ठाठ -बाट को छोड़कर चुपके से जंगलो में चले गए। सिद्धार्थ का त्याग निश्चय ही एक महान त्याग था। गृह त्याग करते समय वह 29 वर्ष के थे। 

  

5. गौतम बुद्ध की ज्ञान की प्राप्ति  

गृह त्याग करने के तुरंत पश्चात राजकुमार सिद्धार्थ ने अपने बहुमूल्य वस्त्र उतार दिए और अपने सुंदर बालों को भी कटवा लिया और भगवे रंग के वस्र पहनकर सन्यासी बन गए। सत्य और ज्ञान की प्राप्ति के लिए सिद्धार्थ अनेक साधुओं से मिले। उन्होंने सर्वप्रथम उत्तर भारत के दो विद्वानों आलार -कालम और उद्ररकरामपुत से ज्ञान की प्रयत्न की ,लेकिन उनके मन को कोई शांति नहीं मिल पा रहा था। उसके बाद वह गया के निकट निरंजन नदी के किनारे उरूवेल नामक वन में उन्होंने अपने पांच साथियो के साथ घोर तपस्या की। उनका शरीर सुख कर काटा बन चुका था ,उनकी सारी हड्डी ऊपर से ही दिखने लगी थी। लेकिन फिर भी उनके मन को शांति नहीं मिल पा रहा था। 

उसके बाद वह तपस्या का मार्ग छोड़ने का संकल्प कियेऔर काफी कमजोर होने के कारण वह सुजाता नाम की एक स्त्री के हाथ से उन्होंने ने दूध पीकर अपना भूख शांत किया। इस घटना  उनके पांचो साथी नाराज हो गए और वो सिद्धार्थ को छोड़ कर चले गए।   


पांचो ब्राह्मणों के सारनाथ चले जाने के बाद सिद्धार्थ ने तपस्या का त्याग कर मनन -चिंतन शुरू कर दिया और वह बिहार के बोधगया जिले में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर वे चिंतन करने लगे। गौतम बुद्ध वहां लगातार सात दिन तक चिंतन में लगे रहे। आठवें दिन वैशाख मास की पूर्णिमा को उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने काफी मेहनत के बाद ये जान लिया की `मनुष्य की अपनी वासना  उसके दुखो का मूल कारण होता है। ये सब जानने के बाद उनके मन को शांति मिली। सिद्धार्थ को यह ज्ञान 35 वर्ष के आयु में प्राप्त हुआ। जिस वृक्ष के निचे इन्होने ज्ञान की प्राप्ति की उस वृक्ष को बौद्धी वृक्ष के नाम से जाना जाता है। और वहां से सिद्धार्थ को सब गौतम बुद्ध के नाम से जानने लगे।

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